सुबह ये कहती है मुझसे
क्यों तनहा यों उठ आते हो |
जो मोती बनकर गिरती थी
वो ओस सी लड़की कहाँ गयी ?
वो चंट गिलहरी कहती है
अब दाने कम पड़ जाते है |
जो फलियाँ साथ लुटाती थी
वो बेल सी लड़की कहाँ गयी ?
तितली कहती है मुझसे
अब बागों में नहीं आते हो
बालों पे जिसके उड़ती थी
वो फूल सी लड़की कहाँ गयी ?
सागर तट पर तोड़ घरोंदे
लहरें मुझे चिढाती है |
जो तिनके शंख सजाती थी
वो सीप सी लड़की कहाँ गयी ?
दीवारें मुझसे कहती है
क्या बाते खुद से करते हो |
जो बातों से स्वेटर बुनती थी
वो उन सी लड़की कहाँ गयी ?
छत पर तारे कहते है
क्यों हमको गिनने आते हो?
जो जुड़ों में जुगनू रखती थी
वो रात सी लड़की कहाँ गयी ?
छुटकी कहती है भैया
अब व्यस्त नहीं तुम मिलते हो|
जो बीजी तुमको रखती थी
वो फोन सी लड़की कहाँ गयी ?
अब रात, गिलहरी,लहरे,
तितली ,तारे मुझे डराते है
कांटे कौए सुरा अँधेरे
सब यार मेरे बन जाते है |
लम्हे होते गुलज़ार बहुत
पर हाय वक्त से छले गए
हम आते आते आ न सके
तुम जाते जाते चले गए |
kya baat hai aashish ... bahut dino baad koi aisi kavita suni, jisme kewal kavita thi ... shuddh kavita
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